कबीर दास १५वीं शताब्दी के भारतीय कवि और संत थे, जिनके लेखन ने हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया हैं। कबीर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था। वे स्वामी रामानंद और हिंदू तपस्वी साधुओं से बहुत प्रभावित थे। वे समाज सुधारक , धर्म सुधारक और अपने समय के अनुरूप कवि थे ।
कबीर दास के दोहे जीवन की सच्चाई और वाणी में विश्वास के कारण वे हृदय के तार झनझना देते है ।
यहाँ पर कुछ अच्छे कबीर के दोहे अर्थ सहित प्रस्तुत किए गए है, यह आपको जरुर पसंद आएगा।
1. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे , आपहुं शीतल होए ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को हमेशा ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
2. बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और उसके फल भी बहुत दूर (ऊँचाई) लगते है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।
3. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।
4. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
अर्थ: हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।
5. ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।
6. जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ॥
अर्थ: जहाँ दया है वहीं धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है , और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।
7. पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।
8. पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥
अर्थ: लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान है।
9. रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो व्यर्थ जा रहा है।
10. माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोहे ॥
अर्थ: जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है - तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।
11. कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूँढे बन माहिं ।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ॥
अर्थ: कस्तूरी हिरन की नाभि में रहती है, फिर भी वह उसे इधर-उधर जंगल में खोजता है। वैसे ही राम यानि भगवान सबके हृदय में वास करते हैं, लेकिन लोग इस सत्य को नहीं समझते और इधर-उधर भटकते रहते हैं।
12. संत मिले सुख उपजे, दुष्ट मिले दु:ख होय ।
सेवा कीजे संत की, तो जनम कृतार्थ सोय ॥
अर्थ: संत से मिलने पर सुख का अनुभव होता है और दुष्ट से मिलने पर मन उदास हो जाता है इसलिए संत की सेवा करो। इससे आपका जन्म सफल होगा।
13. मेरा मुझमें कछु नहीं, जो कछु हय सो तेरा ।
तेरा तुझको सौंपते, क्या कागेगा मेरा ॥
अर्थ: हे भगवान, मेरे अंदर जो कुछ भी है वह मेरा नहीं है। जो कुछ भी है वह तुम्हारा है। जो कुछ तेरा है, मैं तुझे सौंप देता हूं, क्योंकि उन में से किसी से मेरा कोई वास्ता नहीं।
14. एहरन की चोरी करे, करे सूई का दान ।
ऊँचे चढ़कर देखते , कैतिक दूर विमान ? ॥
15. जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ॥
16. सोना सज्जन साधु जन, टूटि जुरै सौ बार ।
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार ॥
17. सोना सज्जन साधु जन, टूटि जुरै सौ बार ।
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार ॥
17. सरुखा सूखा खाई कै, ठण्डा पानी पीव ।
देख पराई चूपड़ी, मत ललचावै जीव ॥